जल्लीकट्टू एक ताज़ा उदाहरण है जब हम परिस्थितियों को ओर भी बुरा बना देते है I हमे ऐसे चीज़ों को शांतिपूर्वक ओर चुपचाप हल कर लेना चाहिए I अगर किसी को "आ सांड मुझे मार" करना ही है तो करने दो .आज उच्चतम न्यायालय के फैसले को नहीं मानते तो ना मानो , फिर कल को 'मेरा नुकसान हो गया' कह कर न्यायालय से क्षतिपूर्ति के लिए अपील मत करना I कुछ लोग तो इसे लेकर देश तोड़ने पर ही तुल गए है इसे उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत की लड़ाई बताने लगे है Iयह हमे समझना होगा हम ऐसे सांप्रदायिक ताकतों को ऐसे इज़ाज़त क्यों दे Iजनता अगर इतनी कॉन्शियस है कल्चर के लिए तो जब देश गलत दिशा में जा रहा हो तब भी कृपया सड़को पर आ जाया करो I भई अंतरराष्ट्रीय समुदाय इक्कीसवी सदी के भारत के बारे में क्या सोचेगा I याद रखो "Every Indian is Ambassador of India without a Diplomatic Passport"
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