Wednesday 25 January 2017

भारत माता के अमर प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी

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 हिंदुस्तान के सवा सौ करोड़ देशवासियो को एक ऐसे व्यक्तित्व के महान जीवन की याद हमेशा अपने जेहन में तरोताज़ा रखनी चाहिए  जो भारत की कुख्यात एवं अवसरवादी कही जाने वाली राजनीती के विभिन आयामो से ऊपर उठकर देश के लिए राष्ट्र कर्म की प्रतिभा रखता था वह भारत माता के महान सपूत भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी थेऐसा विशाल व्यक्तित्व ,जो हमे एक राजनीतिज्ञ ,किसान ,प्रबंधक ,नैतिकता के प्रतीक ,ईमानदारी ,सादगी ,कठिन परिश्रम , त्याग-तपस्या एवं संघर्षमय जीवन की याद दिलाता है
गाँधी जी की जन्म तिथि 2 अक्टूबर थी तो वही दूसरे गांधीवादी नेता लाल बहादुर शास्त्री भी 2 अक्टूबर को वर्ष 1904 को जन्मे थेबचपन में भयंकर गरीबी देख कर पले बढ़े शास्त्री जी बहुमुखी प्रतिभा के धनि थेपढ़ाई का जज्बा इतना कि वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर स्कूल जाते थे। उनके पास नदी पार करने के लिए पैसे नहीं होते थे तो वह तैरकर गंगा नदी पार करते और स्कूल जाते थे। कायस्थ परिवार में जन्में लाल बहादुर ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि हासिल की और अपने उपनाम श्रीवास्तव को हटाकर शास्त्री कर लिया।
गांधी जी के आहवान पर असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए केवल सोलह वर्ष की अल्पायु में पढ़ाई छोड़ दी और कूद पड़े स्वतंत्रता की लड़ाई में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी जब वह जेल में थे तब उन्हें बताया गया कि उनकी पुत्री गंभीर रूप से बीमार है इसके लिए उन्होंने हुकूमत से 15 दिन की जमानत की इज़्ज़त मांगी और वह इस शर्त पर मंजूर कर ली गयी की वे ब्रिटेन विरोधी गतिविधयों में शामिल नही होंगे जब तक वह घर पहुच पाते उनकी बेटी मर चुकी थी वह अपनी बेटी के संस्कार और बाकि क्रियाक्रम करके मात्रा 3 दिन में जेल वापिस लोट आये जबकि उनके पास 12 दिन की छूट बाकि थीउन्होंने ब्रितानी अधिकारियो के सामने ऐसी ईमानदारी का परिचय दिया कि वे भी मंत्रमुग्ध हुए बिना नही रह सके
आज भी जब बारी दहेज की आती है तो बड़े बड़ो के हाथ ललचा जाते है लोग द्वारा विदेसी महँगी गाड़िया दहेज में लेना एक आदत सी बन गया है ओर एक शास्त्री जी थे जिन्होंने दहेज में अपने ससुर जी से चरखा माँगा था ताकि स्वदेशी को बढ़ावा दे सकेसन 1947 में देश आज़ाद होने के बाद शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश पुलिस एवं परिवहन मंत्री भी बनाया गयाaहोने आजाद भारत की केंद्र सरकार में भी कई मंत्रालय संभाले रेल मंत्री रहते उन्होंने रेलवे में कई महत्वपूर्ण सुधार भी किये , रेलवे का तीसरा दर्जा शास्त्री जी की देन हैजब दक्षिण भारत में हुई रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दिया तो वो कई मायनो में अपनी छाप देश की राजनीत पर छोड़ गया उसकी प्रासंगिकता आज भी हमारे देश के पदलोलुप नेताओ के मुह पर तमाचा हैजब वे हिंदुस्तान के गृहमंत्री बने तब भी उनके पास अपना घर तक नही थावरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी पुस्तक बियॉन्ड डी लाइन्स में बताते है कि शास्त्री जी परंपरावादी बहुत थे और अपनी पत्नी ललित शास्त्री को स्नेह पुर्वक अम्मा कह कर बुलाते थे पंडित नेहरू का स्वर्गवास हो जाने के बाद जब बात भारत का नया प्रधानमंत्री चुनने की आयी तो शास्त्री जी ने एक बार भी उतावलापन नही दिखाया और वे आम सहमति बना कर चलने के पक्ष में थे , शुरू में तो उन्होंने जय प्रकाश नारायण और इंदिरा जी में से किसी एक को चुनने का प्रस्ताव मोरारजी देसाई के सामने रख दिया था खैर अंत में जीत शास्त्री जी की हुई क्योकि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज इसके  लिए कांग्रेस में आम राय बना चुके थेकांग्रेस का ख्यात सिंडिकेट समूह उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर रबर स्टाम्प की तरह इस्तेमाल करना कह रहा था परंतु उन्होंने ऐसा होने नही दियाजब वो प्रधानमंत्री बने तब देश खाद्यान की कमी से जूझ रहा था हमे खाद्यान के लिए अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ता था और वहां से सुअरो को दिया जाने वाला लाल गेहू (पी एल 480 का आयात करना पड़ता था  भारत पाकिस्तान युद्ध 1965 के समय हमारा देश सूखे की चपेट में था इतने कठिन हालात में भी शास्त्री जी अमेरिका जैसे देशो के आगे झुके नहीऔर देशवासियो से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील कीखुद भी अपने खाने में कटौती कर दीउनकी अपील का असर हम इस बात से समझ सकते है की बिहार राज्य के पिछड़े और दूर दराज के गांव के लोग भी उपवास रख रहे थे यानि देश का हर वर्ग अपना योगदान दे रहा थाशास्त्री जी ने प्रधानमंत्री आवास में हल चला कर खेती शुरू कर दी थीयही नही खाद्यान की समस्या से हमेसा के लिए छुटकारा पाने के लिए उन्होंने हरित क्रांति जैसे दूरगामी योजना को शुरू किया जिसका परिणाम हम आज देख रहे है की हमारा देश आत्मनिर्भरता की राह पर हैवो गाँधी जी के भारतीय ग्रामीण आत्मनिर्भरता के सिद्धान्त के बड़े पक्षधर थे सफेद क्रांति यानि दुग्ध की हर घर तक उपलब्धता का लक्ष्य भी उनकी दूरगामी सोच थी उन्होंने भारत पाकिस्तान युद्ध को जिस तरह से भारत के पक्ष में किया वह भी उनकी प्रबंधन शक्ति का उदाहरण है , 1962 भारत चीन युद्ध के बाद भारत की सेना का मनोबल टूट चूका था और तीन साल बाद पाकिस्तान ने भारत के कश्मीर को कब्जाने के लिए घुसपैठिये और अपनी सेना भेजनी शुरू कर दी पाकिस्तान प्रायोजित लडाके श्रीनगर से लद्धाख जाने वाली आपूर्ति लाइन को इससे पहले की तोड़ पाते , शास्त्री जी ने बहुत ही साहसपूर्ण कदम उठाते हुए सेना को दूसरे फ्रंट से अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पाकिस्तान पर हमला करने के आदेश जारी कर दिए पाकिस्तान के सर्वेसर्वा अयूब खान आगबबूला हो उठे क्योकि उनको दूर दूर तक गुमान नही था कि भारत ऐसा भी कोई कदम उठा सकता हैखैर अब लड़ाई भयंकर रूप धारण कर चुकी थी दोनों तरफ से भारी नुकसान हुआ , पाकिस्तान की सेना को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी , लगभग सत्रह दिन चले इस युद्ध को अंतरराष्ट्रीय दवाब के चलते रोक दिया गया I भारत ने पाकिस्तान की लगभग 450 वर्ग मील और पाकिस्तान ने भारत की 200 वर्ग मील भूमि पर कब्ज़ा कर लिया , परंतु उससे भी महतवपूर्ण बात यह थी की भारत ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हाजीपीर और तिथवाल सेक्टर को अपने नियंत्रण में ले लिया था युद्ध पश्चात समझौता करने के लिए सोवियत प्रधानमंत्री अलेक्सेई कोसिगिन ने शास्त्री जी और अयूब खान को ताशकंद आने का न्योता दिया जिसे बाद में हम ताशकंद घोषणापत्र के नाम से जानते है वही पर भारत लौटने से एक दिन पहले 10 जनवरी को मध्य रात्रि  2 बजे शास्त्री जी का हृदय गति रुकने से निधन हो गया ज्यो ही यह खबर भारत पहुची , जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी , जिसने भी सुना अवाक् रह गया उनकी अचानक मौत के बाद बहुत से लोगो ने उनकी हत्या किये जाने का शक जताया और बहुत सी बाते इस और इशारा भी करती है क्योकि तो उनके पार्थिव शरीर का सोवियत रूस में और ही भारत में पोस्टमॉर्टम कराया गयाउनकी पत्नी बताती है कि जब शास्त्री जी का शव उन्होंने देखा तो वह नीला पड़ा हुआ था और उनके शरीर पर कट के निशान बने हुए थे जो इस और इशारा करता है कि उन्हें जहर दिया गया था यह सब एक बड़े षड़यंत्र की ओर इशारा करता है इसकी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जाँच कराई जानी चाहिए पता  नही आज से 51 साल पहले 11 जनवरी 1966 के दिन ताशकंत में वे किस षड़यंत्र का शिकार बन गए जिसका परिणाम हमारा देश आज भी याद करके ठग सा महसूस करता हैयक़ीनन हमने उस दिन देश का सबसे बड़ा हितेषी और उदार आदमी खो दिया थाउन्होंने अपने जीवन में फर्श से अर्श तक पहुँच कर सादगी का जीवन व्यतीत करते हुए ऐसी मिसाल कायम की थी जिसका आज कोई सानी नही है उनके पुत्र सुनील शास्त्री अपनी पुस्तक में लिखते है कि देश के सबसे ऊँचे पद पर बैठ कर भी उन्होंने कभी उस पद का अपने निजी हित के लिए दुरूपयोग नही किया जब वे अपनी सरकारी गाड़ी को किसी निजी कार्य के लिए इस्तेमाल करते थे तो उसका पैट्रॉल आदि का खर्च अपनी जेब से भरते थे ऐसे सादा जीवन उच्च विचार वाली हस्तिया इतिहास में बहुत काम देखने को मिलती हैहम आज उस धरती माँ के लाल को दिल से श्रद्धांजलि अर्पित करते है
साहिल कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय



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