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हिंदुस्तान
के
सवा
सौ
करोड़
देशवासियो
को
एक
ऐसे
व्यक्तित्व
के
महान
जीवन
की
याद
हमेशा
अपने
जेहन
में
तरोताज़ा
रखनी
चाहिए जो भारत की कुख्यात एवं अवसरवादी
कही
जाने
वाली
राजनीती
के
विभिन
आयामो
से
ऊपर
उठकर
देश
के
लिए
राष्ट्र
कर्म
की
प्रतिभा
रखता
था
वह
भारत
माता
के
महान
सपूत
भूतपूर्व
प्रधानमंत्री
श्री
लाल
बहादुर
शास्त्री
जी
थे । ऐसा विशाल
व्यक्तित्व ,जो
हमे
एक
राजनीतिज्ञ ,किसान ,प्रबंधक ,नैतिकता
के
प्रतीक ,ईमानदारी ,सादगी ,कठिन
परिश्रम ,
त्याग-तपस्या
एवं
संघर्षमय
जीवन
की
याद
दिलाता
है ।
गाँधी
जी
की
जन्म
तिथि
2 अक्टूबर
थी
तो
वही
दूसरे
गांधीवादी
नेता
लाल
बहादुर
शास्त्री
भी
2 अक्टूबर
को
वर्ष
1904 को
जन्मे
थे । बचपन में
भयंकर
गरीबी
देख
कर
पले
बढ़े
शास्त्री
जी
बहुमुखी
प्रतिभा
के
धनि
थे । पढ़ाई का
जज्बा
इतना
कि
वे
कई
मील
की
दूरी
नंगे
पांव
से
ही
तय
कर
स्कूल
जाते
थे।
उनके
पास
नदी
पार
करने
के
लिए
पैसे
नहीं
होते
थे
तो
वह
तैरकर
गंगा
नदी
पार
करते
और
स्कूल
जाते
थे।
कायस्थ
परिवार
में
जन्में
लाल
बहादुर
ने
काशी
विद्यापीठ
से
शास्त्री
की
उपाधि
हासिल
की
और
अपने
उपनाम
श्रीवास्तव
को
हटाकर
शास्त्री
कर
लिया।
गांधी
जी
के
आहवान
पर
असहयोग
आंदोलन
में
शामिल
होने
के
लिए
केवल
सोलह
वर्ष
की
अल्पायु
में
पढ़ाई
छोड़
दी
और
कूद
पड़े
स्वतंत्रता
की
लड़ाई
में । स्वतंत्रता संग्राम के
दौरान
भी
जब
वह
जेल
में
थे
तब
उन्हें
बताया
गया
कि
उनकी
पुत्री
गंभीर
रूप
से
बीमार
है
इसके
लिए
उन्होंने
हुकूमत
से
15 दिन
की
जमानत
की
इज़्ज़त
मांगी
और
वह
इस
शर्त
पर
मंजूर
कर
ली
गयी
की
वे
ब्रिटेन
विरोधी
गतिविधयों
में
शामिल
नही
होंगे । जब
तक
वह
घर
पहुच
पाते
उनकी
बेटी
मर
चुकी
थी
वह
अपनी
बेटी
के
संस्कार
और
बाकि
क्रियाक्रम
करके
मात्रा
3 दिन
में
जेल
वापिस
लोट
आये
जबकि
उनके
पास
12 दिन
की
छूट
बाकि
थी । उन्होंने
ब्रितानी
अधिकारियो
के
सामने
ऐसी
ईमानदारी
का
परिचय
दिया
कि
वे
भी
मंत्रमुग्ध
हुए
बिना
नही
रह
सके ।
आज
भी
जब
बारी
दहेज
की
आती
है
तो
बड़े
बड़ो
के
हाथ
ललचा
जाते
है
लोग
द्वारा
विदेसी
महँगी
गाड़िया
दहेज
में
लेना
एक
आदत
सी
बन
गया
है
ओर
एक
शास्त्री
जी
थे
जिन्होंने
दहेज
में
अपने
ससुर
जी
से
चरखा
माँगा
था
ताकि
स्वदेशी
को
बढ़ावा
दे
सके । सन 1947 में
देश
आज़ाद
होने
के
बाद
शास्त्री
जी
को
उत्तर
प्रदेश
पुलिस
एवं
परिवहन
मंत्री
भी
बनाया
गया । उaहोने
आजाद
भारत
की
केंद्र
सरकार
में
भी
कई
मंत्रालय
संभाले । रेल
मंत्री
रहते
उन्होंने
रेलवे
में
कई
महत्वपूर्ण
सुधार
भी
किये ,
रेलवे का
तीसरा
दर्जा
शास्त्री
जी
की
देन
है। जब दक्षिण
भारत
में
हुई
रेल
दुर्घटना
की
नैतिक
जिम्मेदारी
लेते
हुए
उन्होंने
इस्तीफा
दिया
तो
वो
कई
मायनो
में
अपनी
छाप
देश
की
राजनीत
पर
छोड़
गया
उसकी
प्रासंगिकता
आज
भी
हमारे
देश
के
पदलोलुप
नेताओ
के
मुह
पर
तमाचा
है । जब वे
हिंदुस्तान
के
गृहमंत्री
बने
तब
भी
उनके
पास
अपना
घर
तक
नही
था । वरिष्ठ पत्रकार
कुलदीप
नैयर
अपनी
पुस्तक
बियॉन्ड
डी
लाइन्स
में
बताते
है
कि
शास्त्री
जी
परंपरावादी
बहुत
थे
और
अपनी
पत्नी
ललित
शास्त्री
को
स्नेह
पुर्वक
अम्मा
कह
कर
बुलाते
थे । पंडित
नेहरू
का
स्वर्गवास
हो
जाने
के
बाद
जब
बात
भारत
का
नया
प्रधानमंत्री
चुनने
की
आयी
तो
शास्त्री
जी
ने
एक
बार
भी
उतावलापन
नही
दिखाया
और
वे
आम
सहमति
बना
कर
चलने
के
पक्ष
में
थे ,
शुरू में
तो
उन्होंने
जय
प्रकाश
नारायण
और
इंदिरा
जी
में
से
किसी
एक
को
चुनने
का
प्रस्ताव
मोरारजी
देसाई
के
सामने
रख
दिया
था
खैर
अंत
में
जीत
शास्त्री
जी
की
हुई
क्योकि
तत्कालीन
कांग्रेस
अध्यक्ष
के
कामराज
इसके लिए कांग्रेस में आम
राय
बना
चुके
थे । कांग्रेस
का
ख्यात
सिंडिकेट
समूह
उन्हें
प्रधानमंत्री
के
तौर
पर
रबर
स्टाम्प
की
तरह
इस्तेमाल
करना
कह
रहा
था
परंतु
उन्होंने
ऐसा
होने
नही
दिया । जब वो
प्रधानमंत्री
बने
तब
देश
खाद्यान
की
कमी
से
जूझ
रहा
था
हमे
खाद्यान
के
लिए
अमेरिका
पर
निर्भर
रहना
पड़ता
था
और
वहां
से
सुअरो
को
दिया
जाने
वाला
लाल
गेहू
(पी
एल
480 का
आयात
करना
पड़ता
था भारत पाकिस्तान युद्ध 1965 के
समय
हमारा
देश
सूखे
की
चपेट
में
था
इतने
कठिन
हालात
में
भी
शास्त्री
जी
अमेरिका
जैसे
देशो
के
आगे
झुके
नही ।और देशवासियो
से
सप्ताह
में
एक
दिन
उपवास
रखने
की
अपील
की । खुद भी
अपने
खाने
में
कटौती
कर
दी । उनकी अपील
का
असर
हम
इस
बात
से
समझ
सकते
है
की
बिहार
राज्य
के
पिछड़े
और
दूर
दराज
के
गांव
के
लोग
भी
उपवास
रख
रहे
थे
यानि
देश
का
हर
वर्ग
अपना
योगदान
दे
रहा
था । शास्त्री
जी
ने
प्रधानमंत्री
आवास
में
हल
चला
कर
खेती
शुरू
कर
दी
थी । यही नही
खाद्यान
की
समस्या
से
हमेसा
के
लिए
छुटकारा
पाने
के
लिए
उन्होंने
हरित
क्रांति
जैसे
दूरगामी
योजना
को
शुरू
किया
जिसका
परिणाम
हम
आज
देख
रहे
है
की
हमारा
देश
आत्मनिर्भरता
की
राह
पर
है । वो गाँधी
जी
के
भारतीय
ग्रामीण
आत्मनिर्भरता
के
सिद्धान्त
के
बड़े
पक्षधर
थे
। सफेद क्रांति यानि दुग्ध
की
हर
घर
तक
उपलब्धता
का
लक्ष्य
भी
उनकी
दूरगामी
सोच
थी । उन्होंने
भारत
पाकिस्तान
युद्ध
को
जिस
तरह
से
भारत
के
पक्ष
में
किया
वह
भी
उनकी
प्रबंधन
शक्ति
का
उदाहरण
है ,
1962 भारत
चीन
युद्ध
के
बाद
भारत
की
सेना
का
मनोबल
टूट
चूका
था
और
तीन
साल
बाद
पाकिस्तान
ने
भारत
के
कश्मीर
को
कब्जाने
के
लिए
घुसपैठिये
और
अपनी
सेना
भेजनी
शुरू
कर
दी । पाकिस्तान
प्रायोजित
लडाके
श्रीनगर
से
लद्धाख
जाने
वाली
आपूर्ति
लाइन
को
इससे
पहले
की
तोड़
पाते ,
शास्त्री
जी
ने
बहुत
ही
साहसपूर्ण
कदम
उठाते
हुए
सेना
को
दूसरे
फ्रंट
से
अंतरराष्ट्रीय
सीमा
पार
कर
पाकिस्तान
पर
हमला
करने
के
आदेश
जारी
कर
दिए
। पाकिस्तान के सर्वेसर्वा
अयूब
खान
आगबबूला
हो
उठे
क्योकि
उनको
दूर
दूर
तक
गुमान
नही
था
कि
भारत
ऐसा
भी
कोई
कदम
उठा
सकता
है । खैर अब
लड़ाई
भयंकर
रूप
धारण
कर
चुकी
थी
दोनों
तरफ
से
भारी
नुकसान
हुआ ,
पाकिस्तान
की
सेना
को
इसकी
भारी
कीमत
चुकानी
पड़ी ,
लगभग
सत्रह
दिन
चले
इस
युद्ध
को
अंतरराष्ट्रीय
दवाब
के
चलते
रोक
दिया
गया
I भारत
ने
पाकिस्तान
की
लगभग
450 वर्ग
मील
और
पाकिस्तान
ने
भारत
की
200 वर्ग
मील
भूमि
पर
कब्ज़ा
कर
लिया ,
परंतु
उससे
भी
महतवपूर्ण
बात
यह
थी
की
भारत
ने
सामरिक
दृष्टि
से
महत्वपूर्ण
हाजीपीर
और
तिथवाल
सेक्टर
को
अपने
नियंत्रण
में
ले
लिया
था
युद्ध
पश्चात
समझौता
करने
के
लिए
सोवियत
प्रधानमंत्री
अलेक्सेई
कोसिगिन
ने
शास्त्री
जी
और
अयूब
खान
को
ताशकंद
आने
का
न्योता
दिया
जिसे
बाद
में
हम
ताशकंद
घोषणापत्र
के
नाम
से
जानते
है
। वही पर भारत लौटने से एक दिन पहले 10 जनवरी को
मध्य
रात्रि 2 बजे शास्त्री जी का
हृदय
गति
रुकने
से
निधन
हो
गया
। ज्यो ही यह खबर भारत पहुची , जंगल की
आग
की
तरह
फ़ैल
गयी ,
जिसने भी
सुना
अवाक्
रह
गया
। उनकी अचानक मौत के बाद बहुत से लोगो ने उनकी हत्या किये जाने का शक जताया ।और
बहुत
सी
बाते
इस
और
इशारा
भी
करती
है
क्योकि
न
तो
उनके
पार्थिव
शरीर
का
सोवियत
रूस
में
और
न
ही
भारत
में
पोस्टमॉर्टम
कराया
गया । उनकी पत्नी
बताती
है
कि
जब
शास्त्री
जी
का
शव
उन्होंने
देखा
तो
वह
नीला
पड़ा
हुआ
था
और
उनके
शरीर
पर
कट
के
निशान
बने
हुए
थे
जो
इस
और
इशारा
करता
है
कि
उन्हें
जहर
दिया
गया
था
यह
सब
एक
बड़े
षड़यंत्र
की
ओर
इशारा
करता
है
इसकी
स्वतंत्र
एजेंसी
द्वारा
जाँच
कराई
जानी
चाहिए । पता नही आज से 51 साल पहले
11 जनवरी
1966 के
दिन
ताशकंत
में
वे
किस
षड़यंत्र
का
शिकार
बन
गए
जिसका
परिणाम
हमारा
देश
आज
भी
याद
करके
ठग
सा
महसूस
करता
है । यक़ीनन हमने
उस
दिन
देश
का
सबसे
बड़ा
हितेषी
और
उदार
आदमी
खो
दिया
था। उन्होंने
अपने
जीवन
में
फर्श
से
अर्श
तक
पहुँच
कर
सादगी
का
जीवन
व्यतीत
करते
हुए
ऐसी
मिसाल
कायम
की
थी
जिसका
आज
कोई
सानी
नही
है
उनके
पुत्र
सुनील
शास्त्री
अपनी
पुस्तक
में
लिखते
है
कि
देश
के
सबसे
ऊँचे
पद
पर
बैठ
कर
भी
उन्होंने
कभी
उस
पद
का
अपने
निजी
हित
के
लिए
दुरूपयोग
नही
किया । जब
वे
अपनी
सरकारी
गाड़ी
को
किसी
निजी
कार्य
के
लिए
इस्तेमाल
करते
थे
तो
उसका
पैट्रॉल
आदि
का
खर्च
अपनी
जेब
से
भरते
थे । ऐसे
सादा
जीवन
उच्च
विचार
वाली
हस्तिया
इतिहास
में
बहुत
काम
देखने
को
मिलती
है। हम आज
उस
धरती
माँ
के
लाल
को
दिल
से
श्रद्धांजलि
अर्पित
करते
है
।
साहिल कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय
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